प्रिय पापा,
आपको ये पत्र लिखते हुए मेरे दिल में बहुत-सी भावनाएँ एक साथ उमड़ रही हैं। मैं जानती हूँ, हो सकता है मेरी बातें आपको थोड़ी कठोर लगें... पर यकीन मानिए, ये शब्द मेरे मन के सबसे कोमल कोने से निकल रहे हैं- एक बेटी के उस हिस्से से, जो अपने पिता से सिर्फ प्रेम, समझदारी और समानता की उम्मीद रखती है।
पापा, बचपन से आपने हमें सिखाया- ‘सच्चाई बोलो, अन्याय के खिलाफ खड़े रहो, और किसी को छोटा मत समझो।’ लेकिन जैसे-जैसे बड़ी हुई, मैंने देखा कि आप इन बातों को बाहर की दुनिया के लिए तो कहते हैं, मगर घर के अंदर शायद भूल जाते हैं। आपने भाई सुनील को पढ़ाई का समय, प्रोत्साहन और आजादी दी, जबकि मुझे जिम्मेदारियों के नाम पर बार-बार किताबों से दूर कर दिया गया। जब मैं पढ़ाई में खो जाती थी, आप कहते थे- ‘अब बहुत पढ़ लिया, थोड़ा रसोई का काम सीखो... कल को ससुराल जाना है।’ पापा, क्या बेटियाँ सिर्फ रोटियाँ बेलने के लिए होती हैं?
मैं जानती हूँ, आप मुझे कम नहीं समझते। पर कभी-कभी आपका व्यवहार वैसा ही लगता है। एक तरफ आप स्कूल में लड़के-लड़कियों की समानता की बातें करते हैं, तो दूसरी ओर मुझे और सुनील को अलग-अलग नजरों से देखते हैं। क्या मैं आपकी बेटी नहीं हूँ? क्या मेरे सपनों का वजन कम है?
उस दिन जब सुनील ने आपसे कहा- ‘पापा, प्रेरणा को भी पढ़ने का हक दीजिए।’ -मेरी आँखें भर आईं थीं। मुझे लगा, कोई तो है जो मुझे समझता है। लेकिन जब आपने हमारी बातें सुनीं, और खुद को बदलने का वादा किया... उस क्षण मैंने महसूस किया कि आप सिर्फ मेरे पिता नहीं, एक सच्चे इंसान भी हैं।
पापा, उस दिन आपने कहा- ‘तुम दोनों मेरी आँखें हो, मेरा वजूद हो।’ -इन शब्दों ने मेरे दिल को छू लिया। सच कहूँ, मुझे आज भी वो पल याद आता है जब आपने मुझे गले लगाया था। वो आलिंगन सिर्फ एक बेटी को नहीं मिला था, एक लड़की को अपना हक, अपना सम्मान और अपना पिता मिला था।
आज मैं उसी भरोसे के साथ आपको ये पत्र लिख रही हूँ कि आगे आने वाली पीढ़ियाँ जब हमारे घर को देखें, तो उन्हें फर्क नहीं दिखे लड़के-लड़कियों में, बल्कि सिर्फ प्यार, समानता और प्रेरणा दिखे।
आपकी वही बेटी,
जिस पर अब आप गर्व कर सकते हैं-
प्रेरणा।
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मेरी प्यारी बेटी प्रेरणा,
तुम्हारा लिखा पत्र पढ़कर मेरे हाथ काँप उठे और आँखें... आँखेँ खुद-ब-खुद भीग गईं। शायद पहली बार किसी ने मुझे मेरे ही आईने में उतारकर दिखा दिया है। तुमने जिस साहस और सच्चाई से अपनी बात रखी- मैं सच में गर्व करता हूँ कि तुम मेरी बेटी हो... नहीं, कहने दो- तुम मेरी सबसे बड़ी शिक्षक हो।
बेटी, मुझे यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं कि मैं तुम्हें हमेशा बराबरी का स्थान देना चाहता था, लेकिन जाने-अनजाने समाज की उन पुरानी रीतियों को मैं ढोता रहा, जिन्हें मैं खुद अक्सर गलत कहता था। जब तुम्हें रसोई के काम में झोंका और भाई सुनील को किताबों में डूबा देखा, तब भी मेरे भीतर एक टकराहट होती थी... मगर शायद पितृसत्ता की जड़ें मेरी सोच में इतनी गहराई तक थीं कि मैं उस आवाज को दबा बैठा।
तुम्हारे पत्र ने मुझे जगा दिया है, झकझोर दिया है। मेरे भीतर का पिता शर्मिंदा है कि उसने अपनी बेटी को अपने ही हाथों वंचित कर दिया, पर आज वही बेटी उसकी आँखें खोल रही है। तुम्हारे शब्दों ने मुझे महसूस कराया कि एक बेटी सिर्फ घर सँभालने के लिए नहीं, बल्कि दुनिया बदलने के लिए भी जन्म लेती है। और बेटी, सुनील ने जो कहा, वह भी मेरे लिए किसी आईने से कम नहीं था। जब अपना बेटा अपनी बहन के हक में आवाज उठाता है, तब एक पिता को सोचना पड़ता है कि उसने अब तक क्या खोया और अब क्या पाना है।
प्रेरणा, तुम सिर्फ एक नाम नहीं, एक दिशा हो, एक सोच हो, एक बदलाव हो। तुम्हारे सवाल मेरे लिए सिर्फ आलोचना नहीं थे, बल्कि एक रोशनी की तरह थे- जो अंधेरे कमरे में खिड़की खोल देती है।
आज मैं तुमसे वादा करता हूँ- अब तुम्हारी राह में मैं दीवार नहीं, एक पुल बनूंगा। अब मैं तुम्हें रोटियाँ बेलने नहीं कहूँगा, बल्कि सपनों को आकार देने का समय दूँगा। अब मैं सिर्फ बेटियों को जन्म नहीं दूँगा, उनके अधिकारों को भी जीकर दिखाऊँगा।
मेरी बेटी, मेरी प्रेरणा, जिस दिन तुमने मुझे ‘गर्व करने लायक पिता’ कहा, उस दिन मैंने खुद को पाया। अब ये समाज क्या कहेगा, क्या सोचेगा- उससे ज्यादा अब मुझे यह चिंता है कि मेरी बेटी क्या सोचेगी।
तुम्हारा अपराधी नहीं,
अब से तुम्हारा समर्पित पिता,
जिसे तुमने बदल दिया।